मंद शीतल हवा के साथ मैं बह रही थी
दूर से सुनायी दे रहा था संगीत एवं मधुर गीत ॥समवेत
दूध सा सफ़ेद
दिखा भव्य मन्दिर एक
आस पास दूब हरे कुछ कंटीले थे पेड़
मध्य में उनके ही बाहर मन्दिर
जलाशय से निकली एक ज्योती -जल-परतों कों भेद
जब आयी मां दुर्गा संग महेश
सिंह पर बैठीं लिये रूप में -था सूर्य सा तेज
और हाथों में थे शस्त्र अनेक
झुण्ड में उड़ रहें थे हंस तभी आयी माँ सरस्वती
कर में थी -वीणा और वेद
हंस पर विराजित शुभ्र वस्त्र कों धारण किये हुए था वेश
ध्यान मग्ना मैं थी प्रसन्न बहुत
लग रहा था वहीँ रह जाऊ जहां पर थे सम्मुख मेरे -नृत्य करते प्रकाश बिन्दुओ के पुंज ।
शिव शिवा समेत *
बरखा ग्यानी