मैं माता के मन्दिर में
जाऊ नित नित
ज्योती जलाऊ .लाल फूल चढ़ाऊ
और प्रसाद पाऊ ..नित नित
डोली में बैठकर आत्ती हैं माँ मन्दिर
लाल चुनरिया ओढ़ कर आती
मैं उनका दर्शन पाती नित नित
शक्ती ..मुक्ति पा लेती
माता रहती हमसबके संग
मन्दिर में
naachate गाते सभी मिलकर
माँ का देख शशि मुख
खुशी से मेरा मन जाता हैं झूम
खिले रात में लगे माता की सुन्दरता
उज्जवल दिन सा
मैं चाहू देखती रहूँ उन्हें
और आनंद की
अम्रित की धारा में बह जाऊ
बन एक धारा
देती रहें और मुझे माँ
इसी तरह आशीर्वाद नित नित
बरखा ग्यानी
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आपने तो बहुत सुन्दर कविता लिखी...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
Beautiful writing and beautiful presentation kishore ji Happy Independence Day to you too:)
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