ईश्वर ॥आपको में करती हूँ हृदय से प्रणाम
नतमस्तक हूँ
झुकी हूँ साशटाँग
बहुत गहरा हैं आपसे मेरा रिश्ता
उस बात से मेरी हुई आज पहचान
मेरे रक्त के हर बूँद में
ओम नमः शिवाया के रूप में लिखा हुआ हैं आपका नाम
उसी के ले रहे हैं आनंद ...मेरे जीवन के अनंत काल
पूर्ण ज्ञान का हो रहा हैं मुझे धीरे धीरे अब आभास
मुझे आप पर हैं विश्वास
और आपको मुझसे पुत्री -वत हैं बहुत प्यार
आपके स्वरूप से
रूप से ,॥मै सम्मोहित रहती हूँ दिवस -रात
मेरी आंखों में बस गए हैं प्रकाश के सद्रिश्य आप
मेरे जन्म मरनआप पर हैं कुर्बान
सब आप ही हैं देव आदिदेव
मुझ भक्त वत्सला के लिए हे शिव आप ही हो महान
शिव -ज्योतिर लिंग के ऊपर जलती हैं आपके प्रति मेरे स्मरण की शिखा
जिसके नोक से आती हैं ज्योति मेरी आंखों तक सीधी
और में स्व्यम बन गई हूँ चमकती स्वर्णिम रोशनी सी - सविता
ठोस बर्फ सी मै हो जाती हूँ जब
बह्ते हो मेरी नसों में गर्म रक्त -जल बनकर आप तब
ध्यान मगन रहती हूँ जब
आपके रंग - रूप के तीव्र आकर्षण के राग लगते तब
मुझे अमृत के हो बुलाते हुए से शीतल - भाप
मन के भीतर हो जाती आपके खयाल में मैं अचेतन .......तब
उस अचेतन मन में तुम्हारी चेतना की मैं सुनती हूँ मधुर धुन
और खिचती हुई सी पार कर एक जल-दर्पण का काँच पहुँचती हूँ
धंसती हुई ...रेत के तरल बूँदों के उस पार
जहाँ पर ............एक श्वेत मंदिर करता रहता हैं सदैव मेरा इंतज़ार
जहाँ पर रहते हैं शिवा ,नागदेव ,सखानंद ,तृष्णा और गणेश महाराज
उसे कहते हैं शिवपुरी धाम
ननकू और में पूजा के आख़िर में करते हैं ॥अमृत बूँदों का पान
वहां पर रहती हैं समस्त देव तुल्य -आत्माये सफेद फूलों के समान
जब लौटती हूँ कर शिव लॉक का संपूर्ण ध्यान
तब एक दीप से ........जल उठते हैं ........अनेक दीप एकाएक एक साथ
सुगंधित धुओ का उड़ता हैं मेरे समक्ष फिर एक पारदर्शी धूम्र -आड़
देखती हूँ एक कागज को जलते हुए मानों हो वह ....मेरा प्राण
नागदेव आते हैं अंत में ...?मेरे पास
अपनी त्वचा से करते चंदन जैसा मुझे ...स्पर्श -प्रदान
साथ होती है बहुत सी गाय
हरे भरे पेड़ पौधों के मध्यमुझे लगता हैं
मैं हूँ उगी हुई -मानों एक अमृत ओस कणसे भिंगी हुई ... हरी घास
*बरखा ज्ञानी
baut khub barakhaa jii
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