Tuesday 16 March 2010

माँ का पाने आशीर्वाद



चढ़ती जांऊ हर सोपान


पर्वत के शिखर पर विराजमान


माँ की ममता का मन्दिर रहा


मुझे आज पुकार


टेड़े -मेडे पथ सर्पीले


हरते मेरा दुःख


तन की खुलती जाती हर बंधी गाँठ


हवा में रिमझिम वर्षा की बुँदे घुलती


मन शीतल हो रहा अति आज


पहुँच ..एक ज्योत जलाउंगी


माँ के पास


तब थिरकेंगे मेरे रोम रोम


आनंदित हो जायेंगे मेरे प्राण


माँ कों ओढाउंगी चूनर लाल


माथे पर लगाउंगी सिंदूर लाल


और


चरणों में करूंगी अर्पित


लाल लाल गुड़हल के फूलो कों


एकजुट संवार


करूंगी प्रणाम .......


दूध और जल से


शिव जी के शीश पर डाल


धतुरा के कडुवे फल रखूंगी ,गिरे मत


इस तरह संभाल


फिर गले में पहनाउंगी नीलकंठ के


कनेर के पीले पीले फूलो से बना इक हार



बदले में माता सिखलाएगी


मुझे


दया धरम का मूल हैं यह पाठ


दुर्गा माँ की शक्ति अनंत हैं


और अथाह


अमर हैं माँ का प्यार

नवरात्री के शुभ अवसर पर

पाने माँ का आशीर्वाद

जान मन के प्रेम की

बहती हैं ब्याकुल धार


बरखा ग्यानी

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