चढ़ती जांऊ हर सोपान
पर्वत के शिखर पर विराजमान
माँ की ममता का मन्दिर रहा
मुझे आज पुकार
टेड़े -मेडे पथ सर्पीले
हरते मेरा दुःख
तन की खुलती जाती हर बंधी गाँठ
हवा में रिमझिम वर्षा की बुँदे घुलती
मन शीतल हो रहा अति आज
पहुँच ..एक ज्योत जलाउंगी
माँ के पास
तब थिरकेंगे मेरे रोम रोम
आनंदित हो जायेंगे मेरे प्राण
माँ कों ओढाउंगी चूनर लाल
माथे पर लगाउंगी सिंदूर लाल
और
चरणों में करूंगी अर्पित
लाल लाल गुड़हल के फूलो कों
एकजुट संवार
करूंगी प्रणाम .......
दूध और जल से
शिव जी के शीश पर डाल
धतुरा के कडुवे फल रखूंगी ,गिरे मत
इस तरह संभाल
फिर गले में पहनाउंगी नीलकंठ के
कनेर के पीले पीले फूलो से बना इक हार
बदले में माता सिखलाएगी
मुझे
दया धरम का मूल हैं यह पाठ
दुर्गा माँ की शक्ति अनंत हैं
और अथाह
अमर हैं माँ का प्यार
नवरात्री के शुभ अवसर पर
पाने माँ का आशीर्वाद
जान मन के प्रेम की
बहती हैं ब्याकुल धार
बरखा ग्यानी
bahut sundar
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