मैं अब वही हूँ रहती जिसे कहते हैं शिवपुरी धाम
बहुत दूर आकाश के उस पार जहां शिव -शिवा हो एक साथ
वहां एक मन्दिर हैं जिसमे हवन कुंड के पास
बैठे रहते हैं लोग दिन रात
इस बार मैं गयी थी अपने स्वामी की पकड़ बांह
मिल गया हैं अब मुझे और उन्हें भी नीलकंठ और मां का आशीर्वाद
अब हम दोनों के लिये वही पर बन गया हैं निवास
इस जग में आयेंगे पर निपटाने भौतिक जरुरी काम
जब तक इस देह में रहेंगे प्राण
जय महादेव ..जय माँ ..जय जय जय शिवपुरी धाम
बरखा ग्यानी
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